UP में बीएड की लोकप्रियता में लगातार गिरावट: क्या हैं इसके कारण?
उत्तर प्रदेश में बीएड कोर्स की लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि युवा अब बीएड कोर्स के प्रति उतने उत्साहित नहीं हैं जितने पहले थे। बीएड को लेकर विद्यार्थियों का रुझान लगातार कम होता जा रहा है। गत वर्षों के आंकड़े इस बात का सबूत हैं। वहीं इस बार के आंकड़ों ने भी इस बात का पुख्ता कर दिया है, कि बीएड के लिए अब युवा तैयार नहीं है। हालांकि बीएड के लिए पंजीकरण करने वाले विद्यार्थियों की संख्या लगभग दो लाख रही, लेकिन पहली काउंसलिंग में शामिल होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम रही। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सिर्फ बीटीसी (डीएलएड) डिप्लोमा धारक प्राइमरी कक्षाओं में पढ़ाने के पात्र होंगे। लेवल-1 (पहली से 5वीं कक्षा तक) के स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए बीएड अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पाएंगे। जिसका असर गत वर्ष के बीएड काउंसलिंग में भी दिखा। दरअसल प्रदेश भर में लगभग 2.50 लाख बीएड की सीटें हैं, जिसमें 8200 सीटें सरकारी कॉलेजों में हैं। इनमें से गत सत्र में मात्र 1.50 लाख सीटें ही भर पाईं थीं। आंकड़ों की मानें तो लगभग एक लाख सीटों पर बीएड में प्रवेश ही नहीं हुआ था। लेकिन इस साल तो स्थिति और भी गंभीर है। बीएड की प्रवेश परीक्षा में ही 1,93,062 परीक्षार्थी सम्मिलित हुए थे। वहीं प्रवेश के लिए पहले राउंड की काउंसलिंग में 75000 परीक्षार्थियों को सम्मिलित होना था। लेकिन काउंसलिंग में कुल 12,400 विद्यार्थियों ने ही पंजीकरण करवाया। विशेषज्ञों की मानें तो न्यायालय के इस फैसले के बाद वर्तमान सत्र में प्रवेश का आंकड़ा एक लाख पहुंचना भी असंभव लग रहा है। सरकारी सीटों के भरने के बाद पंजीकरण की गति भी कम हुई है। निजी कॉलेजों में प्रवेश के लिए छात्र रुचि नहीं दिखा रहे, क्योंकि निजी कॉलेजों में फीस ज्यादा है। प्रदेश भर की शेष 80 प्रतिशत से अधिक सीटें इस बार खाली रह सकती हैं। यह लगातार दूसरी बार होगा, जब एक लाख से ज्यादा प्रदेश भर की बीएड की सीटें खाली रह जाएंगी।
इस गिरावट के पीछे क्या कारण हैं?
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, अब केवल बीटीसी (डीएलएड) डिप्लोमा धारक ही प्राइमरी कक्षाओं में पढ़ा सकते हैं। इस फैसले के कारण बीएड करने वालों के लिए रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।
- अधिक सीटें, कम छात्र: उत्तर प्रदेश में बीएड की लगभग 2.5 लाख सीटें हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश सीटें खाली रह जाती हैं। इसका मुख्य कारण है छात्रों की कम रुचि।
- उच्च फीस: निजी कॉलेजों में बीएड कोर्स की फीस काफी अधिक होती है, जिसके कारण कई छात्र इस कोर्स में दाखिला लेने से हिचकिचाते हैं।
- रोजगार के अवसर: बीएड करने के बाद भी रोजगार के अवसर सीमित होने के कारण छात्र अन्य कोर्सेज को प्राथमिकता दे रहे हैं।
इसका क्या प्रभाव होगा?
- शिक्षा की गुणवत्ता: बीएड कोर्स की लोकप्रियता में गिरावट से शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- शिक्षकों की कमी: यदि बीएड कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या कम होती रही तो भविष्य में शिक्षकों की कमी हो सकती है।
- निजी कॉलेजों पर दबाव: निजी कॉलेजों पर सीटें खाली रहने का दबाव बढ़ेगा।
क्या है समाधान?
- सरकारी नीतियां: सरकार को बीएड कोर्स को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे।
- रोजगार के अवसर: बीएड करने वालों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे।
- फीस संरचना: निजी कॉलेजों को अपनी फीस संरचना पर पुनर्विचार करना होगा।
- शिक्षक भर्ती: शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
बीएड कोर्स की लोकप्रियता में गिरावट एक गंभीर मुद्दा है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार, शिक्षण संस्थान और अन्य संबंधित पक्षों को मिलकर काम करना होगा।