शिक्षा: मान, सम्मान और विकास की जननी

“शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।” नेल्सन मंडेला

ईश्वर नें आपको कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन फिर भी अगर आपके पास शिक्षा है तो आप इस दुनियाँ में खुद को धनवान समझिए। क्योंकि शिक्षा के बलबूते आप कभी भी, कहीं भी, किसी परिस्थितियों में भूखे नहीं रह सकते हैं। यह आपको मान  सम्मान और रोजी-रोटी दिलाने का महत्वपूर्ण साधन है। यह एक ऐसी चाबी है जो सफलता के दरवाजों को आसानी से और कभी भी खोल सकती है। दुनियाँ के किसी भी मनुष्य को पूर्ण शिक्षित नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि मनुष्य हमेशा सीखता ही रहता है और सीखने की यही प्रवृति शिक्षा कहलाती है। शिक्षा मानव समाज के विकास और प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा हमारे समाज में विवेक, ज्ञान, समझ और त्याग की भावना को विकसित करती है। शिक्षा मानवीय सम्पदा में वृद्धि करके सभी क्षेत्रों में समृद्धि का राह आसान बनाती है। शिक्षा के बलबूते हम दुनियाँ के किसी भी सोंच, शक्ति और भावनाओं को बदल सकते है। इससे निश्चित तौर देश-दुनियाँ में बदलाव होगा। भारत के संविधान में शिक्षा से संबंधित कई प्रावधान शामिल हैं, आइए जानते हैं

  1. संविधान की 7वीं अनुसूची के अनुसार शिक्षा का विषय समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है। इसलिए, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास शिक्षा से संबंधित प्रावधानों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
  2. अनुच्छेद 21ए 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। यह प्रावधान गारंटी देता है कि राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। आपको बता दें कि 86वें संवैधानिक संशोधन 2002 द्वारा अनुच्छेद 21ए को भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में जोड़ा गया था।

इन्ही कानूनों को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारे तरह-तरह की योजनाएं लेकर आ रही है। जिसमें समग्र शिक्षा अभियान, पीएम पोषण योजना, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान, उन्नत भारत अभियान आदि शामिल है। अब एक बार भारत में वर्तमान शिक्षा की स्थिति पर चर्चा कर लेते हैं –

बात करते हैं भारत में प्री-स्कूल शिक्षा की स्थिति – प्री-स्कूल शिक्षा एक बच्चे की भविष्य की शैक्षणिक और सामाजिक सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आने के बाद प्री स्कूल शिक्षा को प्रारंभिक बचपन शिक्षा के रूप में जाने लगा है। इसमें 3-8 वर्ष की आयु के छात्रों को शामिल किया गया है। वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2019 के अनुसार, ग्रामीण भारत में 4-5 वर्ष की आयु के केवल 54% बच्चे ही प्री स्कूल में नामांकित थे। यही नहीं प्री स्कूल EDUCATION SYSTEM में प्रमुख चुनौतियों में INFRA और शिक्षक की कमी भी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार ने प्रीस्कूल शिक्षा के महत्व को पहचाना है और इसे ठीक करने के लिए कई पहलें शुरू की हैं।

अब बात करते हैं भारत में माध्यमिक शिक्षा की स्थिति की –

भारत में माध्यमिक शिक्षा का तात्पर्य 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के छात्रों को प्रदान की जाने वाली शिक्षा से है। शिक्षा का यह चरण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार करता है। भारत में माध्यमिक शिक्षा के लिए सकल नामांकन अनुपात यानि GER लगातार बढ़ रहा है। 2021-22 तक, भारत में माध्यमिक शिक्षा के लिए GER 57.6% है। इससे पता चलता है कि भारत में अधिक बच्चों को माध्यमिक शिक्षा हासिल करने का अवसर मिल रहा है। भारत सरकार ने वर्ष 2024 तक सकल नामांकन अनुपात यानि (Gross Enrolment Ratio – GER) को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को उनके SKIL और TALENT को निखारकर विकसित भारत के भविष्य के लिए तैयार करना चाहिए। दोस्तों, भारत में साक्षरता दर की तो 2011 की जनगणना के अनुसार देश साक्षरता दर 74.04 % है जिसमें पुरुष और महिलाओं के साक्षरता दर में काफ़ी अंतर है जहां पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 है वहीं महिलाओं में इसका प्रतिशत केवल 65.46 है।

अब एक बार बात कर लेते हैं भारत में स्कूलों के बुनियादी ढांचा के बारे में – भारत में स्कूलों को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है। शिक्षा के मंदिर का पर्याय इन स्कूलों के इंफ्रा में काफी कमी है। UDISE की रिपोर्ट के अनुसार, 44.75% स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध होने के साथ केवल 33.9% स्कूलों की ही इंटरनेट तक पहुँच थी। रिपोर्ट के अनुसार 35% स्कूलों में फर्नीचर की कमी है, 21% में परिचालन और बिजली की कमी है, 42% में सीढ़ियों की कमी है। इन रिपोर्ट को देखने के बाद मालूम होता है कि हमारे देश में शिक्षण व्यवस्था कितनी दयनीय है।

अब बात करते हैं भारत में स्कूली शिक्षा प्रणाली यह समस्याएँ क्यों हो रही है ?

इसका सबसे बड़ा कारण शिक्षा के लिए कम बजट की घोषणा , केन्द्रीय बजट 2023  के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में भारत का शिक्षा खर्च 2.9% है। यह दुनिया की सबसे बड़ी स्कूली आयु वाली आबादी की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।

शिक्षा की गुणवत्ता – संसाधनों की कमी, खराब प्रशिक्षित शिक्षकों और पुरानी शिक्षण प्रणाली के कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता अक्सर खराब होती है। दूसरी ओर, निजी स्कूल मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए बहुत महंगे होते हैं।

शिक्षा के अधिकार का कमजोर कार्यान्वयन – कई राज्य अभी भी 2009 के शिक्षा के अधिकार अधिनियम  में उल्लिखित मानकों को पूरा नहीं कर पाए हैं। खेल के मैदानों और चारदीवारी के निर्माण के प्रावधान, जो अधिनियम में शामिल हैं, में सबसे बड़ा अंतर है। अभी लगभग  40% स्कूलों में खेल का मैदान और 43% स्कूलों में चारदीवारी का अभाव है।

भाषा – बहुत सारे स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई उनके भाषा से इतर होती है जिससे बच्चे स्कूल में पढ़ाई जाने वाली भाषा को समझ नहीं पाते हैं। अतः इसे ठीक करने के लिए क्षेत्रीय भाषा में भी स्कूलो में पढ़ाई होनी चाहिए। स्कूलों में तकनीकी का अभाव है जिससे छात्रों को तकनीकी का ज्ञान नहीं मिल पाता है,  शिक्षा एक ऐसा शक्तिशाली हथियार है जो दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है। यह ज्ञान, समझ, और कौशल प्रदान करता है जो हमें जीवन में सफलता प्राप्त करने और समाज में योगदान करने के लिए आवश्यक हैं। शिक्षा के माध्यम से ही हम मान, सम्मान और विकास प्राप्त कर सकते हैं।

भारत में शिक्षा की स्थिति:

  • प्री-स्कूल शिक्षा:

o             4-5 वर्ष की आयु के केवल 54% बच्चे प्री-स्कूल में नामांकित हैं।

o             इंफ्रा और शिक्षक की कमी प्रमुख चुनौतियां हैं।

  • माध्यमिक शिक्षा:

o             सकल नामांकन अनुपात (GER) 57.6% है।

o             सरकार ने 2024 तक GER को 40% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।

o             छात्रों को उनके कौशल और प्रतिभा के आधार पर विकसित करने की आवश्यकता है।

o             पुरुष और महिला साक्षरता दर में अंतर है।

  • स्कूलों का बुनियादी ढांचा:

o             44.75% स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध है।

o             केवल 33.9% स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है।

o             फर्नीचर, बिजली, और सीढ़ियों की कमी है।

  • शिक्षा प्रणाली में समस्याएं:

o             शिक्षा के लिए कम बजट।

o             शिक्षा की गुणवत्ता में कमी।

o             शिक्षा के अधिकार का कमजोर कार्यान्वयन।

o             भाषा और तकनीकी का अभाव।

शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए सुझाव:

  • शिक्षा के लिए बजट में वृद्धि।
  • शिक्षकों के प्रशिक्षण में सुधार।
  • शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाना।
  • क्षेत्रीय भाषा में भी शिक्षा प्रदान करना।
  • तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है जो हमें जीवन में सफलता प्राप्त करने और समाज में योगदान करने के लिए आवश्यक ज्ञान, समझ, और कौशल प्रदान करता है। शिक्षा प्रणाली में सुधार करके हम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और सभी बच्चों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान कर सकते हैं।

अतिरिक्त मूल्य:

  • छात्रों को अपनी शिक्षा के प्रति गंभीर और समर्पित रहना चाहिए।
  • अभिभावकों को अपने बच्चों की शिक्षा में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
  • शिक्षकों को अपने छात्रों को प्रेरित और शिक्षित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए।
  • सरकार को शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।

सभी के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण अधिकार है। शिक्षा के माध्यम से ही हम एक विकसित और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकते हैं।

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